
About the Book | |
Author of book | Meera Kant |
Book's Language | Hindi |
Book's Editions | First |
Type of binding | Hardcover |
Pages of book | 92 |
Publishing Year of book | 2023 |
- Availability: In Stock
- Model: BHB-588
- ISBN: 9789385804977
तीन अकेले साथ-साथ
मीरा कांत की नाट्य त्रयी 'तीन अकेले साथ-साथ ' एक ही शीराज़े में एक साथ स्त्री को केन्द्र में रखकर लिखे गये तीन एकल नाटकों का संग्रह है। अपने में जितने मुकम्मल उतने ही अकेले मगर एक डोर से बंधे होने के कारण तीनों एकल साथ-साथ। जैसे बहुत भिन्न व्यक्तित्व और पृष्ठभूमि की तीन स्त्रियों का समान दर्द की डोर से बंधकर एक ही छत के नीचे एक साथ होना। वही सदियों पुराना दर्द यानी पितृसत्तात्मक मूल्यों वाले इस दमघोंटू समाज में उसके अस्तित्व व अस्मिता का संकट।
यह त्रयी मीरा कांत की तीन कहानियों का एकल नाट्य विधा में कायान्तर है। स्त्री चाहे किसी वर्ग, धर्म या जाति की हो उसकी सामाजिक हैसियत और सामाजिक सम्बन्धों में उसकी असमान स्थिति एक अटल सत्य है। यह सत्य उसे 'गली दुल्हनवाली ' में घर की देहरी से बाहर ठेल-ठेल देता है तो ‘कागज़ी बुर्ज' में अचानक सम्बन्धों की चौखट के बाहर पहुंचा देता है और 'धामपुर' में मानसिक संतुलन की देहरी पार करने को विवश कर देता है। ये तीनों एकल संघर्षमय स्त्री-जीवन की इन्हीं
परिणितियों के आलेख हैं। तीनों ही कायान्तर मुख्य नारी चरित्र के माध्यम से अभिनीत होने के कारण स्त्री के अंतःसंसार के महीन रेशों को बहुत बारीकी से पकड़ते हैं। नारी-मन द्वारा प्राय: झेले जाने वाले थपेड़ों को समझने का उद्यम हैं ये एकल । 'तीन अकेले साथ-साथ' उदाहरण है कि कैसे विधा परिवर्तन कभी-कभी कायान्तर ही नहीं कायाकल्प भी कर सकता है।